लगभग हम भी कुछ ऐसे ही हैं, हमारी बातें, कलियुग के वेष-भूषा, (हमारी बातें - आत्मा-परमात्मा, ज्ञान-मुक्ति जैसी) कि तरह महान संतों जैसा है, लेकिन कर्म (आचरण) में वो धर्म ना के बराबर है, अथवा है ही नहीं ।।
हमें अपने आप को बदलना होगा, अन्यथा भ्रष्टाचार उन्मूलन का स्वप्न, स्वप्न ही रह जायेगा । तथा इस तरह कि बातें धर्मं का प्रचार और समाज में बदलाव लाने के बजाय, धर्मं का ह्रास ही करेंगी ।।
हमें अपने आप को बदलना होगा ।। Apane Aap ko Badalana Hoga.
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