मित्रों, हम अविश्वास के भावों को जल्दी ग्रहण करते है, विश्वास के भावों को नहीं । उसका कारण ये है, कि हमारें चारों ओर का वातावरण ही अविश्वास से भरा मिलता है । जहां नीति पूर्ण कार्य नहीं, अनीति पूर्ण कार्य ज्यादा हो रहे है । साथ ही हम भी उन कार्यो को करने में संलग्न है ।।
हालांकि हमारे अन्दर बैठा भगवान हमें हर समय सचेत करता रहता है, कि नीति पूर्ण कार्य एवं धर्म आधारित कर्त्तव्य करें । यही श्रेष्ठता की ओर ले जाते है । लेकिन हम इसे अनदेखा करते रहते हैं । लेकिन ये हमें सदैव याद रखना चाहिए, कि धर्म की जड़ हमेशा हरी होती है ।।
हम अविश्वास के भावों को जल्दी ग्रहण करते है ।। Avishwas ke Bhav.
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